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________________ कल्पसूत्रे - - सशब्दार्थे ॥३३६॥ रायकण्णा ८ निगडबद्धहत्थपाया ९, मुंडियमत्थया १०, बद्धकच्छा ११ अट्ठ- भगवतो ऽभिग्रहमतवजुत्ता १२, अस्मूणि मुयमाणा १३ होज्जा। एयारिसेण अभिग्गहेण जइ वर्णनम् आहारो मिलिस्सइ तो पारणगं करिस्सामि। अन्नहा छम्मासी तवं करिस्सामित्ति कटु भगवं भिक्खटाए अडइ । भगवओ सो अभिग्गहो न कत्थइ । परिपुष्णो हवइ ॥५५॥ ____ शब्दार्थ-[तए णं समणे भगवं महावीरे लाढदेसाओ पडिनिक्खमइ] तदनन्तर श्रमण भगवान् महावीर लाट देश से विहार करते हैं [पडिनिक्खमित्ता जेणेव सावत्थी णयरी तेणेव उवागच्छइ] निकलकर जहां श्रावस्ती नगरी थी वहां पधारे हैं [उवागच्छित्ता तत्थ विचित्तेणं तवोकम्मेणं अप्पाणं भावमाणे दसमं चाउम्मासं ठिए] पधार कर विचित्र प्रकार के तपो कर्म से आत्मा को भावित करते हुए दसवां चौमासा वहां NE L : '.:: ॥३३६॥ ::
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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