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कल्पसूत्र
शब्दार्थे
- ॥३२१॥
भगवान् तो देह की ममता से रहित होकर दुष्टजनों और कुत्तों के किये उपसर्गों हुए सहन करते थे। जैसे हाथी संग्राम के मोर्चे पर आगे ही बढता जाता है, उसी प्रकार भगवान् महावीर प्रभु भी आगे ही बढते गये और उपसगों के पारगामी हुए । एक बार लाट देश की दुर्गम भूमि में ग्राम के समीप पहुंचे हुवे, भगवान् को देखकर म्लेच्छ लोग गांव के बाहर निकलकर इस जगह से दूर भाग जाओ यहां से लौट जाओ' इस प्रकार कहकर भगवान् को यष्टि और मुष्टि आदि से मारने लगे । . जहां पहले भगवान् पर प्रहार हुए थे, उन्हीं स्थानों में भगवान् कर्मों का क्षय करने के लिए बार-बार विचरते थे । उस लाट देश में कोई अनार्य जन डंडे से, कोई भाले आदि शस्त्रों की नौक से, कोई मिट्टी के ढेले से और कोई पत्थर से और कोई ठीकरों से भगवान् को मारते और कोलाहल करते थे। कभी-कभी वे पहले शरीर के बालों को खींच -खींच कर भगवान् को नाना प्रकार के कष्ट देते थे । शरीर को विदारण कर देते थे ।
भगवतो लाढ देशविहरणम्