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________________ विहरणम् कल्पसूत्रे । अनादर होने से और गालियां. खाने से तथा इसी प्रकार का अन्य अवांछित व्यवहार भगवतो । सशब्दार्थे होने से मेरे बहुत कर्मों का क्षय हो जायगा। ऐसा सोचकर उन्होंने लाट देश में लाढदेश॥३१९॥ विहार किया । लाट देश में प्रवेश किया ही था कि मार्ग में चोर मिल गये । चोरों ने भगवान् को देखकर समझा कि हमें यह मुंडा मिला, अतः अपशकुन हो गया, यह अपशकुन इसी मुंडे के बंध के लिए हो, ऐसा सोचकर चोरों ने श्री वीर प्रभु को वार वार यष्टि और मुष्टिं से मारा । वह सब उपसर्ग भगवान् ने, सम्यक् प्रकार से सहन न किये। इसके बाद दुर्गम लाट देश में विहार करने वाले भगवान् क्रमशः लाट देश की वज्रभूमि नामक प्रदेश में तथा शुभ्र भूमि नामक प्रदेश में, पधारे। उस वज्रभूमि || . और शुभ्र, भूमि में भगवान महावीर स्वामी ने अनेक प्रकार के कांटों आदि तथा ! - सर्दी और गर्मी के, एवं दंशमशक आदि के कष्टों को समितियुक्त होकर, सम्यक् प्रकार i. से निरन्तर सहन किया। उस लाट देश की वज्र भूमि एवं शुभ्र भूमि में भगवान् । * ॥३१९॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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