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. .. -- fills से कल्पसूत्रे ।। दुक्खं सहीअ, अथवा आसन से धक्का देते थे फिर भी निर्जरार्थी भगवान्' काया की भगवतो
लांढदेश-' सशब्दार्थे , ममता का त्याग कर तथा अप्रतिज्ञ (निरपेक्ष) होकर दुःखों को सहन कर लेते थे [एवं ॥३१८॥
तत्थ से संबुड़े महावीरे. फरूसाइं परिसहोवसग्गाइं पडिसेवमाणे संगामसीसे सुरोव्व. । अयले रीइत्था] इस प्रकार भगवान महावीरने वहां संग्राम के अग्रभाग में शूर पुरुष
की तरह कठोर परीषहों और उपसुगों को सहन करते हुए निश्चल भाव से विहार किया। [एस विही मइमया माहणेण अपडिन्नेण भगवया ‘एवं. सव्वेऽवि रीयंतु' ति कटु ।
बहुसो अणुकतो], अन्य मुनि जन भी ऐसा ही परीषह सहन करें इस प्रकार विचार कर - माहण एवं अप्रतिज्ञ-निरपेक्ष भगवान् ने बार बार इस विधिका पालन किया ॥५३॥
____भावार्थ:--अनार्य देश में भांति २ के उपसर्ग सहन करने के अनन्तर भगवान् ने । ..... पुनः चिन्तन किया-मुझे अभी बहुत से कर्मों का क्षय करना है। अतएव मुझे उस ।। ........ लाट देश में विहार करना चाहिए, जहां अनार्य लोगों की बहुलता है। लाट देश में ॥३१८॥ .
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