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________________ कल्पसूत्रे सशब्दाथे भगवतो लाढदेश ॥३१॥ (विहरणम् समीप पहुंचे और गांव में पहुंच भी नहीं पाये कि अनार्य लोक बाहर निकल निकल कर भाग जाओ यहां से दूर' ऐसा कहकर मारने लगे [हयपुवोऽवि भगवं पुणो पुणो तत्थ विहरीअ] जहां पहले भगवान् को मारा गया था वहां भगवान् पुनः पुनः विचरण करते थे [तत्थ केइ अणारिया भगवं दंडेण केइ मुट्ठिणा केइ कुंताइफलेणं केइ लेलुणा केइ कवालेण हता हंता कंदिसु] परिणाम स्वरूप उन अनार्यों में से कई लोग भगवान् को डंडे से, कई लोग मुट्ठी से कंइ लोग भाले आदि से, कंइ मिट्टी के ढेले से और कई ठिकरियों से मार मार कर चिल्लाते थे [एगया ते लुचियपुव्वाणि मंसूणि उटुंभिय विरूवरूवाइं परिसहाई दाऊणं कायं लुचिंसु] कभी-कभी वे पहले नोचे हुए बालों को पकडकर नाना प्रकार के परीषह को देकर शरीर को नोंचते थे [अहवा पंसुणा उवकिरिंसु | उच्छालिय णिहणिंसु] अथवा भगवान् को धूल से भर देते थे और उपर उछालकर पटक देते थे। [अदुवा आसणाओ खलइंसु तहवि पणयासे भगवं वोसटकाए अपडिन्ने ॥३१७॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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