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भगवतोऽ
पसूत्र सशब्दार्थ
नार्यदेश
॥२९३॥
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संजातपरीपहोपसर्ग वर्णनम्
कंदिसु] अनार्य देश के बालक भगवान् को देखकर लाठी और मुट्ठी से मार-मार कर हल्ला करते थे चिल्लाते थे [अणारिया य भगवं दंडेहिं ताळिसु] अनार्यलोग भगवान् को डंडों से मारते थे। [केसग्गे करिसिय करिसिय दुक्खं उप्पाइंसु तहवि भगवं नो दोसीअ] उनके बालों के अग्रभाग को खींच खींच कर कष्ट उत्पन्न करते थे, फिर भी भगवान् ने उनपर द्वेष नहीं किया [अगारत्थेहिं संभासिओवि भगवं तेहिं परिचयं परिच्चज्ज मोणभावेण सुहज्झाणनिमग्गे चेव विहरीअ] गृहस्थों के भाषण करने पर भी भगवान् उनके साथ परिचय का परित्याग करते हुए मौन भाव से शुभध्यान में मग्न ही रहते थे [भगवं सहिउं असक्के परीसहोवसग्गे न गणीअ] जिस परीषह को सहन करना अशक्य था उनको भी भगवान् ने कुछ नहीं गिना [नच्चगीएसु रागं न धरीअ] नृत्य और गीतों में राग धारण नहीं किया [दंडजुद्धमुद्विजुद्धाइयं सोच्चा न उकंठीअ] दण्डयुद्ध और मुष्टि युद्ध आदि की बात सुनकर उत्कण्ठा प्रगट नहीं की [काम कहा
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