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________________ उपकारापकारविपये भगवतः समभावः ॥२८२॥ कल्पसूत्रे [चउत्थ पारणगे बहुलमाहणेण पडिलाभिए] चौथे पारणक के दिन कोल्लाग सन्निवेश में सशब्दार्थे ।। बहुल ब्राह्मणने आहार दिया। [संसारे परित्तीकए] और अपना संसार अल्प किया [सव्वस्थ | पंच दिव्वाइं पाउन्सूयाइं] सब जगह पांच दिव्य प्रकट हुए। [एवं तइयं चाउम्मासं चंपाए नयरीए दुदुमासक्खमणेण ठिए ३] इसी प्रकार प्रभु तीसरे चातुर्मास में चंपा । नगरी में दो दो मास खमण कर के स्थित हुए [चउत्थं चाउम्मासं चउम्मासमखमणेण पिट्टिचंपाए ठिए] चौथे चातुर्मास में चारमास के चौमासी तप के साथ पृष्ठचंपा में स्थित हुए [पंचमं चाउम्मासं भदिलपुरम्मि नयरे नानाविहाभिग्गहजुत्तेण चाउम्मासक्खमणेणं ! ठिए] पांचवें चौमासे में भदिलपुर नगर में चौमासी तपस्या एवं नानाविध अभिग्रह के साथ स्थित हुए [छष्टुं पुण चाउम्मासं भदिलपुरम्मि नगरे नानाविहाभिग्गहजुत्तेणं चाउमासखमणेणं ठिए] छठे चातुर्मास में भी भदिलपुर नगर में विविध प्रकार के अभिग्रह के एवं चौमासी तप के साथ स्थित हुए [सत्तमं चाउम्मासं आलंभियाए 10 ॥२८२॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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