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कल्पसूत्रे सशब्दार्थे - ॥२८॥
उपकारापकारविषये भगवतः समभावः
बैठे [तं समयं] उस समय [एगो सीय पीडिओजणो] शीत से पीडित कोइ मनुष्य [आगमीय] आकर [देवदूसं वत्थं गहिय गओ] देवदूष्य वस्त्र को उठाले गया [अओ अचेलए होत्था] अतः तत्पश्चात् फिर से देवदूष्य वस्त्र ग्रहण न करने से भगवान् अचेलक हो गये।
[तए णं से समणे भगवं महावीरे पुवाणुपुट्विं चरमाणे गामाणुगाम दूइजमाणे] उसके बाद श्रमण भगवान् महावीर पूर्ववर्ती तीर्थंकरों की परम्पराका अनुसरण करते हुए ग्रामानुग्राम विचरते हुए [बीयं चाउम्मासं रायगिहस्स णयरस्स नालंदाभिहाणे पाडगे मासमासक्खमणतवेणं ठिए] दूसरे चोमासे में राजगृह नगर के नालंदा नामक पाडे | में मासखमण तपस्या के साथ स्थित हुए। [तत्थ णं पढममासक्खमणपारणगे विजय
सेठिणा भगवं पडिलाभिए] वहां पहले मासखमण के पारणे के दिन विजय सेठ ने आहारदान दिया। [एवं बितियपारणगे गंदसेटिणा] इसी प्रकार दूसरे पारणक के दिन नन्द सेठ ने [तइय पारणगे सुनंदसेटिणा] तीसरे पारणक के दिन सुनन्द सेठ ने और
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