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कल्पसूत्रे सशब्दार्थे
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से भयभेरवेण पिसायरूवेण भीसेइ ] उसके बाद उस देवने भयंकर पिशाच का रूप बनाकर डरवाया [तओ सीहं विउव्विय पहुसरीरं फालेइ ] फिर सिंह की विकुर्वणा करके प्रभु के शरीर को फाडा [तए णं भगवं उवरिं महाभारं लोहमयं व गोलयं पक्खिवे ] उसके बाद भगवान् के ऊपर बहुत भारी लोहे का गोला फेंका। [एवं सपरिच्छसूयर भूयपे वाइक एहिं नाणाविहेहिं उवसग्गेहिं उवसग्गिओऽवि भगवं अविचलिए ] इसी प्रकार सर्प शूकर, भूत, प्रेत, आदि द्वारा किये गये नाना प्रकार
के उग्र उपसर्गों से भी भगावान् विचलित न हुए [ अकंपिए अभीए अतलिए अथे अणुव्विग्गे अक्खुभिए असंभंते तं उज्जलं महं विउलं घोरं तिव्वं चंडं पगाढं दुरहियासं वेयणं समभावेण सम्मं सहेइ] वे अकंपित, अभीत अत्रासित, अत्रस्त, अनुद्विग्न अक्षुfra और असंभ्रांत रहे । उन्होंने उस उज्ज्वल, महती, विपुल, घोर, तीत्र, चण्ड, प्रगाढ, एवं दुस्सह वेदना को समभाव से सम्यक् प्रकार से सहन किया [खमेइ तिति
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उपकाराप
कार विषये भगवतः समभावः
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