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________________ कल्पसूत्रे सशब्दार्थे | ॥२६९॥ वाचालग्रामे नागसेनगृहे भगवतो भिक्षाग्रहणम् तुटे] दान देकर में आज भगवान् को अशनादि दिया हूं ऐसा सोचकर अधिक प्रसन्न हुआ [तए णं तस्स नागसेणस्स तेणं दव्वसुद्धणं दायगसुद्धेणं पडिग्गाहगसुद्धेणं तिविहेणं तिकरणसुद्धेणं भगवम्मि पडिलाभिए समाणे] तब द्रव्य शुद्ध, | दायक शुद्ध, प्रतिग्राहकशुद्ध-त्रिकरणशुद्ध आहार भगवान् को बहराने पर [संसारे परित्तीकए] अपना संसार अल्प किया [गिहंसि य इमाइं पंच दिव्वाइं पाउब्भूयाइं तं जहा] नागसेन के घर में यह पांच दिव्य वस्तु प्रगट हुई वे इस प्रकार हैं-[१-वसुहारा बुढा २-दसद्धवण्णे कुसुमे णिवाइए ३ चेलुक्खेवे कए ४ आहयाओ दुंदुहिओ, ५ अंत. राऽवि य णं आगासंसि अहोदाणं ति घुट्टे य] १ सोने की वर्षा हुई २ पांचरंग के फूलों की वर्षा हुई ३ वस्त्रों की वर्षा हुई ४ दुंदुभियों का घोष हुआ और ५ आकाश में अहो- | दान अहोदान की ध्वनि हुई ॥ ४९ ॥ भावार्थ-इस प्रकार श्रमण भगवान् महावीर ने चंडकौशिक को प्रतिबोध देकर ॥२६९॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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