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कल्पसूत्रे सभन्दार्थे ॥२७०||
मोक्ष का भागीबनाकर उसका उपकार किया। तदनन्तर जिस अटवी में चंडकौशिक वाचालग्रामे
नागसेनगृहे रहता था, उस अटवी से प्रभु बाहर निकले। बाहर निकलकर उत्तर वाचाल नामक
भगवतो ग्राम में पधारे। उस ग्राम में नागसेन नाम का एक गृहस्थ रहता था। उसका एकाकी ) भिक्षा
ग्रहणम् पुत्र विदेश गया हुआ था। बारह वर्ष के बाद, अकाल-वर्षा के समान, अचानक ही वह घर आ पहुंचा। पुत्र के आगमन की खुशी के उपलक्ष्य में नागसेन ने बड़ा भारी उत्सव मनाया। उसमें नाना प्रकार के अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य भोजन पाचकों से वनवाये। बनवाकर मित्रों को, सजातियों को, पुत्र आदि निजक जनों को, काका आदि स्वजनों को, रिश्तेदारों को, तथा दास-दासी आदि परिजनों को जिमाया। उस काल उस समय में भगवान वीर प्रभु अर्धमास खमण के पारणक के दिन भिक्षाचर्या (गोचरी) के लिए उस गाथापति के घर में प्रविष्ट हुए । नागसेन गाथापति ने भगवान् को अपने घर पधारे हुए देखा और देखकर उसको बहुत हर्ष हुआ भगवान् को देखकर
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