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________________ कल्पसूत्रे काए उतारी [ओमुइत्ता एगसाडियं उत्तरासंगं करेइ] पादुकाएँ उतारकर उसने एक- वाचालग्रामे नागसेनगृहे सशब्दार्थ .. शाटिक उत्तरासंग धारण किया [करित्ता भगवं सत्तटुपयाइं अणुगच्छइ] वस्त्र धारण ॥२६॥ करके वह भगवान् के सामने सात आठ पग चला [अणुगच्छित्ता तिक्खुत्तो आयाहिण । भिक्षा ग्रहणम् !! पयाहिणं करेइ] चलकर उसने तीनबार आदक्षिण प्रदक्षिणा की [करित्ता वंदइ नमसइ] के बाद में उसने भगवान को वंदना की नमस्कार किया [वंदित्ता णमंसित्ता जेणेव भत्त। घरे तेणेव उवागच्छइ] पंचांग नमनपूर्वक नमस्कार करके जहां रसोई घरथा वहां पर । | आया [उवागच्छित्ता] आकरके [सयहत्थेणं] अपने हाथ से [तेण नागसेणेण उकिटेणं 9 भत्तिबहुमाणेणं भगवं] नागसेन ने उत्कृष्ट भक्ति और बहुमान के साथ भगवान् को [विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं पडिलाभेस्सामित्ति कटु तुटे, पडिलाभेमाणे तुटे] विपुल अशनपान खाद्य और स्वाद्य का दान दूंगा ऐसा विचार कर प्रसन्नचित्त हुआ देते समय दान दे रहा हूं ऐसा विचार कर अधिक से प्रसन्न हुआ [पडिलाभिएत्ति । ॥२६८॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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