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________________ कल्पसूत्रे दा ॥२६७॥ FROKOS के उत्सव में विविध प्रकार के अशन, पान, खादिम और स्वादिम बनवाये [ उवक्खडाfar as freeसयण संबंधिपरियणे भुंजावेई ] और बनवाकर मित्रों ज्ञातिजनों निजकजनों स्वजनों संबन्धी जनों और परिजनों को भोजन जिमाया। [तेणं कालेणं तेणं समएणं भगवं पक्खोववासपारणगे भिक्खायरियाए तस्स गिहं अनुपविट्टे] उस काल और उस समय में भगवान् अर्द्धमासखमण के पारणे के दिन आहार के लिये नागसेन के घर में प्रविष्ट हुए [तए णं नागसेणो गाहावई भगवं एजमाणं पासइ ] तत्पश्चात् नागसेन गाथापतिने भगवान् को अपने घर पधारे हुए देखा और [पासित्ता ] देखकर [हटुलुटु० आसणाओ अब्भुट्ठेइ ] उसको बहुत हर्ष हुआ भगवान् को देखकर उसके मनमें तृप्ति हुई आनंद से उसका चित्त उल्लसित होने लगा वह शीघ्र ही आसन से ऊठा और [अब्भुट्ठित्ता पायपीढाओ पच्चोरुहइ] उठकर पादपीठ से होकर वह उससे नीचे उतरा [पच्चोरुहित्ता पाउयाओ ओमुयइ] उतरकर अपने पैरों से पादु 200300 वाचालग्रामे | नागसेन गृहे भगवतो भिक्षा ग्रहणम् ॥२६७॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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