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__ कल्पसूत्रे सशब्दाथै
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तं जहा-वसुहारा वुट्ठा १, दसद्धवण्णे कुसुमे णिवाइए २, चेलुक्खेवे कए ३, आह- वाचालग्रामे
नागसेनगृहे याओ दुंदुहीओ ४, अंतराऽवि य णं आगासंसि अहोदाणं २ति घुट्टे य॥४९॥ भगवतो
भिक्षाशब्दार्थ-[एवं णं समणे भगवं महावीरे चंडकोसियसप्पोवरि उवयारं किच्चा]
ग्रहणम् इस प्रकार श्रमण भगवान् महावीर चंडकोशिक सर्प पर उपकार करके [ताओ अडवीओ
पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता उत्तरवायालाभिहे गामे समागच्छइ] उस अटवी से . बाहर निकले । निकलकर उत्तरवाचाल नामके ग्राम में पधारे [तत्थ एगो नागसेनो । : नाम गाहावाई परिवसई] वहां नागसेन नामका एक गाथापति रहता था [तस्स एगो । र एव पुत्तो आसी] उसके एक ही पुत्र था [सो विदेसगओ बारसवरिसाओ अकाल बुद्धी विव अकम्हा गिहे समागओ] वह विदेश गया हुआ था। बारह वर्ष वाद अकालवृष्टि के समान वह अचानक ही घर आ गया। [अओ सो नागसेणो पुत्तागमणमहोच्छवम्मि विविह असणपाणखाइमसाइमाइं उवक्खडावेइ] इसलिए नागसेन ने पुत्र के आगमन ॥२६६॥