SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 274
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चण्डको शिकस्य भगवदुपरिविषप्रयोगः चण्डकोशिकप्रतिवोधश्च S कल्लसत्रे । लेसमवि न चलइ] और न कायोत्सर्ग से ही चलित हुए [एवं दोच्चंपि तच्चपि डसइ, सशब्दार्थे , तहवि णो पडइ, ताहे अमरिसेणं पहुं पलोयंतो अच्छइ] यह देखकर वह दूसरी बार और ॥२५८॥ तीसरी बार भी प्रभु को डंसा फिर भी भगवान् न गिरे तब वह अत्यन्त क्रोध भरी दृष्टि से भगवान् को देखने लगा [एवं तं भगवं संतमुदं अउलकतिमंतं सोम्मं सोम्म वयणं सोम्मदिदि माहुरियगुणजुत्तं खमासीलं पिच्छंतस्स तस्स ताणि विसभरियाणि अच्छीणी विज्झाइयाणि] शांतमुद्रावाले, अतुलकान्ति के धनी सौम्य, सौम्यमुख, सौम्यदृष्टि मधुरता के गुण से युक्त और क्षमाशील भगवान् को देखनेवाले उस चंडकौशिक की विषभरी आंखे शांत हो गई। [तओ कोहपुंजरूवो सो चंडकोसिओ थद्धो जाओ] क्रोध का पिण्ड वह चण्डकौशिक स्तब्ध रह गया [पहुस्स संतिवलेण तस्स कोहो 1. समिओ] प्रभु की शान्ति के बल से उसका क्रोध शांत हो गया [तस्स कोहजालाए उवरि पहुणा खमाजलं सित्तं, तेण सो संतो संतसहावो संजाओ] उसकी क्रोध ज्वाला पर SHOES । ॥२५८॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy