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चण्डकोशिक वल्मिकपाधै
भगवतः ।
कायोत्सर्गः
कल्पसूत्रे शक्ति, कारण मिलने पर इच्छानुसार परिवर्तित की जा सकती है, अतः जहां चंडकौशिक सशब्दार्ये
MB रहता है, वहां जाने में लाभ हो सकता है । इस प्रकार विचार कर श्री वीर प्रभु उसी ॥२५३॥
| सीधे मार्ग से रवाना हुए। - जिस समय भगवान् महावीर उस भयानक अटवी में प्रविष्ट हुए, उस समय वहां की धूल पैरों आदि के निशानों से रहित थी, क्यों कि वहां किसीका भी आवागमन नहीं | होता था, अतएव वह ज्यों कि त्यों थी। वहां की जल की नालियां जलाभाव के कारण
सूखी पड़ी थीं। कितने ही पुराने पेड़ चंडकौशिक के विष की ज्वाला से भस्म हो गये | थे और कितने ही सूख गये थे। अटवी का भूभाग सडे पडे और सूखे पत्तों के ढेरों | से आच्छादित हो गया था और हजारों बावियों से व्याप्त था। मार्ग कहीं दिखाई नहीं देता था। वहां के सभी कुटीर धराशाइ [जमीन दोस्त] हो गये थे। ऐसी दुरभि अटवी में भगवान् वहीं पहुंचे जहां चंडकौशिक की बांबी थी। वहां पहुंचकर भगवान्
॥२५३॥