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कल्परत्रे । नरक भूमि में जाने योग्य जितने प्राणातिपात आदि क्रूर कर्म उपार्जन करने में समर्थ । चण्डको
शिक वल्मिसशन्दार्थे | होता है, वही चक्रवर्ती उसी शक्ति को अगर शुभ में लगा दे तो उतने ही अहिंसा
कपार्थे ॥२५२॥ २॥ आदि को उपार्जन करके मोक्ष भी पा सकता है । जो प्राणी शुभ और अशुभ, दोनों भगवतः
कायोत्सर्गः में से किसी भी एक को उग्र शक्ति के साथ करने में असमर्थ होते हैं, और जो निस्तेज हैं, वलियार बैल के समान है, जो जड की भांति जगत् की शक्ति से अभिभूत हो जाते हैं और जिन की पामरता, भोगकामना, दरिद्रता और प्रमाद की कोई ॥ सीमा ही नहीं है, ऐसे प्राणी क्या कर सकते है ? उनसे कुछ भी नहीं हो सकता। इनके विपरीत, जिन जीवों में आत्मबल है, शूरता आदि है, वे शुभ या अशुभ किसी भी। पर्याय में क्यों न हो, समानरूप से वांछनीय है। क्यों कि अशुभ पर्याय में भी जो आत्मबल आदि जिस आत्मांश से उत्पन्न हुआ है, उस आत्मांश की शक्ति अनर्थकारी । सामर्थ्य भी क्षयोपशम के द्वारा ही जीव को प्राप्त होत है। वह क्षयोपशममावर्जनित ॥२५२॥