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कल्पसूत्रे शब्दार्थे ॥२५१ ॥
उन दोनों चित्त स्थितियों में शुभ-अशुभ फल को उत्पन्न करने की शक्ति तो समान: ही है। अतएव जिस शक्ति के कारण शुभ या अशुभ परिणाम उत्पन्न होते हैं, वह मूलभूत शक्ति निस्सन्देह अपेक्षित ही हैं। जैसे अग्नि की शक्ति कच्चे चावल आदि • अन्नों को भली भांति पकाने में समर्थ होती है, और अनेकानेक उपयोगी वस्तुओं को भस्म करने में भी समर्थ होती हैं, वह द्विविध शक्ति एक ही अग्नि से उत्पन्न होती हैं। • उसी प्रकार शुभ और अशुभ कर्तव्य में प्रयुक्त होनेवाली शक्ति भी आत्मा के एक ही अंश से उत्पन्न होती है। अलबत्त उसका शुभ कार्य में उपयोग करना यही शेष रहता "है । यह व्यक्तियों के अधीन है । सबला अनिष्ट प्रवृत्ति जनक शक्ति बार-बार धिक्कार देकर दूर करने योग्य हैं। ऐसा जो लोग विचार करते हैं, वे यह भूल जाते हैं कि 'मनुष्य की जो शक्ति, जितना अनिष्ट कर सकती है, वही उतना इष्ट भी कर सकती है । इस विषय में चक्रवर्ती का उदाहरण लीजिए। कोई चक्रवर्ती जिस शक्ति से सातवीं
चण्डकौशिक वल्मि
कपा
भगवतः कायोत्सर्गः
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