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कल्पसूत्रे सशब्दार्थे ॥२४९॥
| घास-फुस भी भस्म हो गया था। भस्म होने के बाद नया घास उगता नहीं था। चण्डको
शिकवल्मिचंडकौशिक के बिषजनित इस उपद्रव के कारण अटवी का वह मार्ग रुक गया था कोई 1 (
कपाा आवागमन नहीं करता था। उसी सीधे मार्ग से भगवान को जाते देख गुवालों के । भगवतः
कायोत्सर्ग: लडकों ने भगवान् से कहा-हे भिक्षु ! इस सीधे रास्ते से मत जाओ, चक्करदार रास्ते से जाओ। जिससे कान ही टूट जाय, उस कान के आभूषण से क्या प्रयोजन ? अथोत इस सीधे रास्ते से क्या लाभ जब कि इस से जाने पर लक्ष्य स्थान पर पहुंचने से । पहले ही प्राणों से हाथ धोना पडे ? यह सीधा रास्ता कान तोड देनेवाले गहने के समान है। इस रास्ते में एक महाविकराल दृष्टिविष सर्प है । वह तुम्हें खा जायगा। गुवालों के लडकों की बात सुनकर श्री महावीर स्वामीने अपने ज्ञानबल से विचार किया-'यद्यपि चंडकौशिक सर्प उग्र क्रोध स्वभाववाला है, फिरभी है सुलभ बोधि है। जीव की किसी भी अनर्थकारिणी प्रकृति को, उग्र रूप से, उदयावलि का में आई देख
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