SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 263
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चण्डको कल्पसूत्रे सशब्दार्थे ॥२४७॥ शिक वल्मि. कपाधै भगवतः कायोत्सर्गः णागमणाभावाओ चरणाइ चिंधरहिया जहटिया चेव] जब भगवान उस अटवी में प्रविष्ट हुए तो वहां की धूल प्राणियों का गमनागमन न होने से चरण चिन्ह आदि से रहित, ज्यों कि त्यों थी। [जलनालियाओ जलाभावेण सुकाओ] जल की नालियां जलाभाव से सूख गइ थी [जुण्णा रुक्खा तव्विसजालाए दड्ढा सुका य] पुराने पेड चंडकौशिक | के विष की ज्वालाओं से जल गये थे और सूख गये थे [सडियपडिय जुण्णपत्ताइ संघा एण भूमिभागो आच्छाइओ] भूभाग सडे पडे जीर्ण पत्तों के ढेर से ढक गया था। [वम्मीयसहस्सेहिं संकेतो लुत्तमग्गो य आसी] हजारों बांबियों से व्याप्त था और मार्ग | लुप्त हो गया था [कुडीरा सव्वे भूमिसाइणो संजाया] वहां की सभी छोटी छोटी कुटियां धराशाही हो गइ थी [एयारिसीए महाडवीए भगवं जेणेव चंडकोसियस्स वम्मीयं तेणेव | | उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तत्थ काउसग्गेण ठिए] ऐसी महाअटवी में जहां चण्डकौशिक की | बांबी थी वहां पहुंच कर भगवान उस बांबी के पास कायोत्सर्गपूर्वक स्थित हो गये॥४७॥ ॥२४७॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy