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कल्पसूत्रे समन्दायें H२४१॥
कपार्श्व
माणं भगवं गोवदारगा एवं वइसु] उस सीधे मार्ग से भगवान को जाते देखकर ग्वाल चण्डको
शिक वल्मिबालकों ने इस प्रकार कहा-[रे भिक्खू ! एएण उज्जुणा मग्गेण मा गच्छाहि, बंकेण गच्छाहि] अरे भिक्षु ! इस सरल रास्ते से मत जाओ; किन्तु टेढे रास्ते से जाओ [जे भगवतः णं कण्णो तुइ तेण कण्णभूसणेण वि किं पओअणं ?] जिससे कान टूट जाय, उस
कायोत्सर्गः कान के गहने से क्या लाभ ? [उज्जुमग्गे महाडवीए एगो महाविगरालो दिद्रिविसो | सप्पो चिटुइ] इस सीधे मार्ग में महा अटवी में अत्यन्त भयंकर दृष्टिविष सर्प रहता है। [सो तुम भक्खिहिइ] वह तुम्हें खा जायगा [तं सोच्चा पहू णाणबलेण चिंतीअ] यह सुनकर भगवान ने ज्ञानबल से सोचा [ज सो सप्पो जइ वि उग्गकोहपगडी तहवि सुलहबोही अत्थि] यद्यपि वह सर्प भयंकर क्रोधी है फिर भी वह सुलभबोधि है [जीवस्स कंचिवि अणिट्रकरि पयडिं तिव्वत्तणेण उदयावलियं पविटें दट्टणं जणा तं परिवणसंभवबाहिरं मन्नंति] जीव की किसी अनिष्टकारी प्रकृति को तीव्रता के साथ उदया
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