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भगवतो
कल्पसूत्रे सशन्दाथै ॥२३३॥
यक्षकृतोपसर्ग
वर्णनम्
हाथियों द्वारा उपसर्ग किया। उस पर भी भगवान् को दृढ, स्थिर अतएव मन वचन काय से अविचल देखकर यक्षने अत्यन्त तीखे नाखूनों, एवं दांतों वाले व्याघ्रों द्वारा उपसर्ग किया। तब भी प्रभु अविचल रहे तो यक्ष ने अतिशय तीखे नखों और दाढों के अग्रभाग वाले सिंहों द्वारा उपसर्ग करवाया, तब भी भगवान् का न तो चित्त ही चंचल हुआ, और न शरीर ही। वे कार्योत्सर्ग से विचलित न होकर जब स्थिर ही बने रहे, तो यह देखकर यक्ष ने स्वभाव से विकराल वैतालनामक व्यन्तरदेवों के द्वारा भगवान् को सताया। इस प्रकार उस दुष्ट स्वभाववाले यक्षने सारी रात भगवान् को उपसर्ग किये। उपसर्ग करके वह स्वयं थक गया, इस कारण उसे विषाद हुआ, परन्तु भगवान् महावीर को विषाद नहीं हुआ। वे द्वेष से अछूत रहे। उन्होंने उद्वेग का अनुभव नहीं किया। उनके मनमें दीनता का प्रवेश न हुआ। वे कृत-कारित-अनुमोदना-रूप तीनों करणों से युक्त मन, वचन, काय से गुप्त रहे, और यक्ष द्वारा किये हुए समस्त उपसों को
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