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कल्पसूत्रे सशन्दार्थे ॥२३२॥
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शक्ति से उत्पन्न करके भगवान् को उनसे कटवाया। भगवान् डांस-मच्छरों के द्वारा भगवतो.
यक्षकृतोउत्पन्न किये उपसर्ग से क्षुब्ध न हुए, और प्रशस्त ध्यान में लीन रहे तो उसने विच्छओं
पसर्गको उत्पन्न करके उनसे डसवाया। इस उपसर्ग से भी भगवान् को विचलित या कंपित l वर्णनम् हुए न देख उसने वैक्रियशक्ति से उत्पन्न किये गये उग्र विषवाले विशालकाय सर्प से भगवान् के शरीर में डसवाया। भगवान् इससे अकंपित रहे, जैसे पवन के समूह से पर्वत अकंपित रहता है, तब उस यक्ष ने भालुओं-रीछों की विकुर्वणा की। भालुओंने अनेक तीक्ष्ण नखों से भगवान् को उपद्रव किया। यक्षने देखा कि भगवान् उससे भी त्रास को प्राप्त न हुए और आत्मध्यान में लीन हैं। तो उसने विकुर्वणा से उत्पन्न किये हुए घुरघुर शब्द करते हुए, कांटे की नौंक के सदृश तीक्ष्ण दांतों वाले शुकरों से (1) भगवान् को विदारण करवाया। उससे भी भगवान को विषाद न हुआ और वे ध्यान में स्थिर रहे तो उसने तत्काल ही वन के अग्रभाग के जैसे तीखे दन्ताग्रभागों वाले ॥२३२॥