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कस्तपत्रे .
निर्भय भाव से, शान्तिपूर्वक अदीनता के साथ तथा निश्चल रूप से सहन करते रहे। भगवतो
यक्षकृतो ससन्दाथै तब उस यक्षने अवधिज्ञान से जाना कि प्रभु तो मन से भी ध्यान से विचलित नहीं ।
पसर्ग ॥२३४॥
हुए। यही नहीं, उनकी प्रबल स्थिरता भी उसने देखी तब अथाह क्षमा के सागर ॥ वर्णनम् ! दूसरों द्वारा किये अपकार को सहन करनेवाले एवं गुण के समुद्र भगवान् से अपने
अपराध की क्षमा मांगी। उन्हें वन्दना की, नमस्कार किया। वन्दना और नमस्कार
करके वह अपने स्थान पर चला गया। उस काल और उस समय में श्रमण भगवान् । महावीर ने उस अस्थिक ग्राम में आठ अर्धमास क्षपण (पन्द्रह-पन्द्रह दिन के आठ
बार के) तपश्चरण करके वह चातुर्मास व्यतीत किया। चातुर्मास व्यतीत करके भगवान् । - अस्थिक ग्राम से निकले और वायु के समान अप्रतिबद्ध-विहार करते हुए श्वेताम्बी नामक नगरी की ओर पधारे ॥४६॥
मूलम्-अह य सेयंबियाए णयरीए दो मग्गा संति-एगो वंको बीओ
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