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कल्पसूत्रे शब्दार्थे
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वीअ ] उससे भी विषाद को अप्राप्त और ध्यानमग्न भगवान को देखकर शीघ्र ही उत्पन्न किये हुए वज्र की नोंक के समान तीखे दांतों के अग्रभाग वाले हाथी से भगवान को कष्ट दिया [तेण वि दढं थिरं अवियलं दद्दूणं विउव्विएहिं खरतरनखर दाढेहिं वग्घेहि उवदवीअ ] उस से भी भगवान को दृढ स्थिर एवं अविचल देखकर विकुर्वणा से उत्पन्न किये हुए अतिशय तीक्ष्ण नख और दाढोंवाले व्याघ्रों से उपसर्ग करवाया [aaa पाय विउव्हिएहिं केसरीहिं खरयर नहरदाढग्गघाएहिं उवदवीअ ] उस से विचलित न हुए देखकर विकुर्वणा से उत्पन्न किये हुए केसरीसिंहों द्वारा तीक्ष्णतर नखों और दादों के अग्रभाग से उपसर्ग करवाया । [तेण पुणो fa frरं frreरं विलोsय पगडीए अईव वियरालेहिं वेयालेहिं उवदवीअ ] उस : उपसर्ग से भी भगवान को स्थिर चित्त और स्थिरकाय देखा तो स्वभाव से अत्यन्त विकराल वेतालों से उपसर्ग करवाया [एवं सो दुरासओ जक्खो पुणं ति
भगवतोयक्षकृतोपसर्ग वर्णनम्
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