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कल्पसूत्रे
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समन्दार्थे ॥२२८॥
उत्पन्न करके उन से डंसवाया। तेण वि अवियलं अविकंपियं पासिय विउविएण भगवतो
यक्षकृतो. महाविसेण महासीविसेण भगवओ सरीरम्मि दंसीअ] उस उपसर्ग से भी अचल और 12
पसर्गअकम्पित देखकर विकुर्वणा से उत्पन्न किये हुए अत्यन्त विष वाले महान् सर्प से वर्णनम् भगवान के शरीर को डंसवाया। तेण वि वायजाएण अयलमित्र अवियलं दवणं तेण रिच्छा विउविया] जैसे पवन समूह से पर्वत अचल रहता है उसी प्रकार भगवान को | सर्पदंश से भी अचल देखकर उसने रीछों के रूप बनाये [ते य पखरण खरधाएहिं उव
दवीअ] रिछों के रूप में उसने तीखें नाखूनों से भगवान को कष्ट दिया [तओ वि अणुविग्गं सयज्झाणलग्गं दवणं विउव्वेएहिं घुरुधुरायमाणेहिं सुलग्गमुहखुरेहिं सुयरेहि फालीय] उस से भी अनुद्विग्न और ध्यान में संलग्न देखकर विकुर्वणाजनित, घुरघुराते हुए, कांटे की नौंक के जैसे तीखे दांतवाले शूकरों से विदारण करवाया [तेण वि अविसणं झाणणिसणं विलोइय सज्जो समुप्पाइएणं कुलिसग्गतिक्खदंतग्गेणं करिणा उव- ॥२२८॥