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________________ कल्पसूत्रे सशब्दार्थे H२२७॥ चाउम्मासं वक्कमिय अत्थियाओ गामाओ पडिनिक्खमइ । पडिनिक्खमित्ता पवणुव्व अप्पsिहयविहारेणं विहरमाणे सेयंबियं पायरिं पट्टिए ॥४६॥ शब्दार्थ –[तए णं से विहरमाणे भगवं पढमंमि चाउमासम्म अत्थियं गामं समणुपत्ते] उसके बाद विहार करते हुए भगवान प्रथम चातुर्मास अस्थिक ग्राम में पधारे [तत्थ णं सूलपाणिजक्खस्स जक्खाययणे राओ काउसग्गे ठिए ] वहां शूलपाणि नामक यक्ष के यक्षायतन में रात्रि के समय कायोत्सर्ग में स्थित हुए । [दुल्लक्खे सो जक्खो सयपगडि अणुसरंतो भगवं उवसग्गे । इतत्थ पुव्वं सो दंसमसगाई समुप्पाइय पहुं तेहिं दंसीअ] दुष्ट भावनावाले उस यक्षने अपनी प्रकृति का अनुसरण करते हुए भगवान को उपसर्ग किया। पहले तो उसने डांस मच्छर उत्पन्न करके उन से प्रभु को डसवाया । [तेण उवसग्गेण अक्खुद्धं सज्झाणलुद्धं विलोइय विच्छिए उप्पाइय तेहिं दंसीअ] उस उपसर्ग से भी भगवान को अक्षुब्ध और धर्मध्यान में लुब्ध-लीन देखकर बिच्छुओं को भगवतोयक्षकृतो पसर्ग वर्णनम् ॥२२७॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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