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कल्पसूत्रे सदा
॥२२४॥
सन्निवेश में श्रमण भगवान् महावीर ने षष्ठभक्त (बेले) के पारणे के दिन भिक्षाचर्या के लिए भ्रमण करते हुए बहुलनामक ब्राह्मण के घर में प्रवेश किया। बहुल ब्राह्मण ने भक्ति और अत्यंत सत्कार के साथ भगवान् को खीर का दान दिया । दान ग्रहण करने के अनन्तर अशनादि रूप द्रव्य से शुद्ध द्रव्य और भाव से शुद्ध, दाता के कारण तथा अतिचार रहित तप और संयम से सम्पन्न ग्राहक (पात्र) के शुद्ध होने से, इस प्रकार द्रव्य, दाता, और पात्र, तीनों शुद्ध होने से तथा दाता के मन-वचन-काय रूप तीनों करण शुद्ध होने से भगवान् वीर को बहराने पर उस बहुल ब्राह्मण के घर में आगे कही जानेवाली पांच देवकृत वस्तुएँ प्रगट हुई। वे इस प्रकार हैं- (१) देवों ने स्वर्ण की वृष्टि की। (२) पंचवरण के कुसुम वरसाये । (३) वस्त्रों की वर्षा की। (४) दुंदुभियां बजाई । (५) आकाश में 'अहोदान, अहोदान' का उच्चखर से नाद किया। तत्पश्चात् श्रमण भगवान् महावीर कोल्लाग सन्निवेश से निकले और निकलकर जनपद - विहार विचरने लगे ॥४५॥
पष्ठक्षपणपारणार्थ
चहुलब्राह्मण
गमनादि
वर्णनम्
1 ॥२२४॥