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कल्पसूत्रे
1॥२२३॥
वर्णनम्
प्रभात होने पर आकाश में सूर्य का उदय होने पर सहस्त्र किरणवाला सूर्य जब अपने पष्ठक्षपण सशब्दार्थे THI तेजसे आकाश में चमकने लगा, तब सदोरक मुहपत्ति का प्रतिलेखन किया, एवं सदो- पारणार्थ
Me रक मुहपत्ति को मुख पर वांध करके गोछे का प्रतिलेखन किया गोछे को अंगुलियों से ब्राह्मणगृहेI ग्रहण करके वस्त्र को धारण किया रजोहरण का प्रतिलेखन करके पात्रा का प्रतिलेखन गमनादि | करके गोछे से पात्रा को पुंज्या इस प्रकार साधुसमाचारी किया कहा भी है
[पच्चत्थं च लोगस्स] इत्यादि कहने का भाव यह है की लोगों में प्रतीति-विश्वास के लिये तथा वर्षाकल्प आदि समय में संयम पालने के लिये केवलज्ञानादिको ग्रहण l करने के लिये और भव्य जीवों को श्रुतज्ञान का लाभ देने के लिये साधुचिन्ह धारण करना आवश्यक है इस आगमोक्त नियमानुसार साधु समाचारी करके कुर्मारग्राम से विहार किया और पूर्ववर्ती तीर्थंकरों की परम्परा से विचरते हुए, एक गांव से दूसरे गांव सुखपूर्वक विहार करते हुए जहां कोल्लाग सन्निवेश था वहां पधारे। कोल्लाग
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