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________________ l भगवतोगोपकृतो. पसर्ग वर्णनम् । कल्पसूत्रे मृत्यु की इच्छा करने वाले ! अरे दुष्ट फलदायक और अशोभन लक्षणों वाले। (जिनसे सशन्दार्थे शुभ-अशुभ समझा जाय वह लक्षण सामुद्रिक शास्त्र में प्रसिद्ध हथेली आदि की रेखाएँ | ॥२१५॥ तिल, मषा आदि अथवा चेष्टाएं लक्षण कहलाती है) अरे हीन पुण्य वाले कृष्ण चतुदर्शी को जन्म लेने वाले । अर्थात् पापी ! अरे श्री (शोभा या वैभव) ही (लज्जा) धृति (धैर्य) कीर्ति (ख्याति) से सर्वथा शून्य ! अरे अधर्म के कामी ! अरे अपुण्य और नरक-निगोद के कामी ! अरे । अधर्म की कांक्षा करने वाले। अधर्म के प्यासे। अरे अपुण्य की कांक्षा करने वाले । अरे अपुण्य के प्यासे ।, अरे नरक निगोद की आकांक्षा करने वाले अरे | नरक-निगोद के प्यासे। किस प्रयोजन से तूं ऐसा पाप कर्म कर रहा है ? जो त्रिलोक के नाथ, त्रिलोकवन्दित, त्रिलोक के प्रमोदकारी, त्रिलोक के कल्याणकारी भगवान् MPSI महावीर स्वामी को उपसर्ग करता है ? इस प्रकार कहकर इन्द्र, गुवाल को तर्जन करने ताडन करने और मारने को उद्यत हुए। ॥२१॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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