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________________ भगवतो. गोपकृतो. पसर्गवर्णनम् कल्पसूत्रे , वह बैलों की खोज में दिनभर और रात-भर निकट वर्ती प्रत्येक वन में भटका । इस सशब्दार्थे । प्रकार खोज करने पर भी बैल न मिले तो वह गुवाल लौटकर भगवान् के पास आया। ॥२१४॥ ! आकर उसने देखा कि बैल घास खाकर तृप्त हुए वहां बैठे हैं। बैलों को देखने के अनन्तर गुवाल एकदम क्रोध से लाल हो गया। क्रोध से जलता | हुआ ऊपर नीचे पैर पटकता हुआ वह श्री वीर प्रभु से बोला-'रे भिक्षु ! मेरे बैलों को !! छिपाकर मेरे साथ हांसी करता है ? ले, इस हांसी का फल भोग, इस प्रकार कहकर ज्यों ही वह भगवान् की तर्जना (तर्जनी अंगुली उठाकर भर्त्सना) करने और ताडना { करने (थप्पड, आदि से मारने) को उद्यत होता है, त्यों ही स्वर्ग लोक में शक का आसन कांपने लगा, आसन कांपने पर शक देवेन्द्र देवराज ने अवधिज्ञान से भगवान् वीर स्वामी पर आये हुए उपसर्ग को जानकर, और उसी समय मनुष्य लोक में आकर । उस गुवाल से कहा-रे गुवाल ! अरे जिसकी कोई इच्छा नहीं करता उसकी अर्थात् ॥२१॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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