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कल्पसूत्रे सशब्दार्थे
॥२२३॥
से, तथा श्रीखण्ड चन्दन से लेपन किया गया था, उनकी सुगन्ध में आसक्त, अतएव मोह को प्राप्त एवं सुगंध के अनुरागी भ्रमर आदि जन्तु, चार मास से भी कुछ अधिक समय तक प्रभु के शरीर में बार-बार चिपटकर उनके मांस और रुधिर को चूसते थे, मगर भगवान् ने मांस और रुधिर चूसने वाले उन जन्तुओं को हटाया तक नहीं । . कारण की भगवान् कैसे होते हैं इसके लिये शास्त्रकारोंने कहा है
परीसह रिउदंता, धूयमोहा जिइंदिया | सव्वदुक्खपहीणट्ठा, पक्कमंति महेसिणो ॥ तत्पश्चात् कोई गुवाल बैलों को प्रभु के पास
दशवै अ. ३ गा. १३ खडा कर के प्रभु से बोला
हे भिक्षु ! मेरे इन बैलों की देखरेख करना जिससे कहीं चले न जाएँ। इस प्रकार कहकर वह गुवाल भोजन पानी के लिए अपने घर चला गया। खाने-पीने के पश्चात् वह अपने घर से भगवान् के निकट आया तो उसे वहां बैल न दिखे । तब
Cocercresce
भगवतो
गोषकृतोपसर्ग
वर्णनम्
॥२१३