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भगवतोगोपकृतोपसर्गवर्णनम्
. कल्पसूत्रे ! स्वामी, कुर्मार ग्राम के समीप एक वृक्ष के नीचे कायोत्सर्ग करके स्थित हो गये। समन्दार्थे ॥२१२॥
भगवान् जीवनपर्यन्त शीत, उष्ण आदि परीषहों को सहन करने वाले थे। उन्होंने इन्द्र के द्वारा दिये हुए देवदूष्य वस्त्र से हेमन्त ऋतु में भी, शरीर रक्षा के हेतु से .. शरीर को आच्छादित नहीं किया। कहा भी है
आयावयंति गिम्हेसु, हेमंतेसु अवाउडा ।
वासासु पडिसंलीणा, संजया सुसमाहिया॥ दशवै. अ. ३. गा. १२ । इन्द्र द्वारा दिया गया देवदूष्यं वस्त्र जो भगवान् ने ग्रहण किया सो सभी तीर्थकरों का, 1
इन्द्र के द्वारा अर्पित किये गये वस्त्र को ग्रहण करना आचार है ऐसा जानकर ग्रहण किया दीक्षा के अवसर पर भगवान् के शरीर का सुगन्धित द्रव्यों से कस्तूरी-कुंकुम आदि
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