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भगवतोगोपकृतो. पसर्गवर्णनम्
कल्पपत्रे । मिस मिसेमाणे पहु मेवं कहीअ-] तब वह गुवाल बहुत क्रुद्ध हुआ और मिसमिसाता मशब्दार्थे । प्रभु से इस प्रकार बोला॥२०८
["रे भिक्खू ! किं मम बलिवद्दे संगोविय मए सह हास करेसि ? ] अरे भिक्षु ! मेरे बैलों कों छिपाकर क्या मेरे साथ उपहास करता है ? [भुंजाहि एयस्स फलं" ] ले इसी हांसी का फल भोग” [त्ति कहिय जाव भयवं तज्जेउं च समुज्जयइ] इस प्रकार कह कर वह ज्यों ही भगवान् की तर्जना और ताडना करने को उद्यत हुआ [ताव दिवि सक स्स आसणं चलइ] यों ही उसी समय शक का आसन चलायमान हुआ [तएणं से सक्के देविंदे देवराया ओहिणा भगवओ उवसग्गं आभोगिय मणुस्सलोए हव्वमागमिय तं गोवं एवं वयासी-] तब शक देवेन्द्र देवराज अवधिज्ञान से भगवान् पर उपसर्ग आया जान कर तत्काल मनुष्यलोक में आये और ग्वाले से बोले-[हं भो ! गोवा ! अपत्थियपत्थया ! ] अरे गोप अप्रार्थित का प्रार्थित [दुरंतपंतलक्स्यणा] कुलक्षणी
॥२०८॥