SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 223
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कल्पसूत्रे शब्दार्थे ॥२०७॥ [तओ पच्छा कोऽवि गोवो बलिवद्दे पहुसमीवे ठविय पहुं कहीअ ] तत्पश्चात् एक गुवाल अपने बेलों को प्रभु के समीप खड़ा करके बोला - हे भिक्खू ! [इमे मे बलिवा रक्खणिज्जा न कहिंपि गच्छिज्ज ति] हे भिक्षु ! मेरे इन बैलों की रखवाली करना, ये कहीं चले न जायें [कहिय सो गोवो भोयणपाणटुं निय गिहे गओ ] इस प्रकार कहकर वह गुवाल भोजन पानी के निमित्त अपने घर चला गया [भुक्तपीओ सो पहुपासे आगमिय बलिवद्दे अदद्वणं तेसिं गवेसणाए अहोरत्तं वर्ण aणं भमीअ] खा पीकर वह प्रभु के पास आया। बैले दिखाई न दिये । तब वह दिनभर और रातभर सारे वन में बैलों की खोज करता रहा [ एवं गवेसणाए जया नो लडा for तथा सो समवे आगच्छ] इस प्रकार खोज करने पर भी जब बैल नहीं मिले तो वह वापस भगवान् के पास लौट आया [तत्थ चरियतणे तत्थ ठिए बलिव पास] उसने देखा बैल घास खाकर तृप्त हुए वहां बैठे हैं । [तपणं से गोवे आसुरत्ते भगवतोगोपकृतोपसर्ग वर्णनम् ॥२०७॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy