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कल्पपत्रे
A हेमंते वि सरीरं नो पिहियं] अतएव उन्होंने इन्द्र के द्वारा दिये हुए देवदूष्य वस्त्र से भगवतो
गोपकृतोसशब्दार्थे , हेमंत ऋतु में भी शरीर नहीं ढका [इंददिण्णं देवदूसं वत्थं जं भगवया धरियं तं
पसर्ग॥२०६॥
सव्वतित्थयराणं इमो कप्पो, त्ति कटु धरियं] इन्द्र का दिया हुआ देवदूष्य वस्त्र जो । वर्णनम् भगवान ने धारण किया सो समस्त तीर्थंकरों का यह कल्प है, ऐसा समझकर ही धारण किया था [अभिणिक्खमणसमए जं भगवओ सरीरं सुगंधिदव्वेण चंदणेण य चच्चियं आसी] दीक्षा के समय भगवान का शरीर सुगंधी द्रव्यों से तथा चंदन से चर्चित था [तग्गंधल्लुद्धा मुद्धा सुगंधप्पिया भमरपिवीलियाइ जंतुणो] अतः उस सुगंध के लोभी मुग्ध एवं सुगंध प्रिय भ्रमर आदि जन्तुओंने [साहियं चाउम्मासं जाव पहु. सरीरं ओलग्गिय ओलग्गिय मंसं रुहिरं च चोसीअ] चारमास से भी कुछ अधिक समय तक प्रभु के शरीर में चिपट चिपट कर उनका मांस और रुधिर चूसा, [ परं भगवया णो ते णिवारिया] परन्तु भगवान् ने उनका निवारण नहीं किया .
॥२०६॥