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________________ कल्पसूत्रे 'सदार्थे M२०९|| [you ] you to [चाउदसिया ] काली चौदस का जन्मा [सिरिहिरिधिइकित्तिपरिवज्जिया ] श्री ह्री धृति और कीर्ति से परिवर्जित [अधम्मकामया] अधर्मका इच्छुक [अपुण्णकामया ] पाप का अभिलाषी [नरयनिगोयकामया] नरक और निगोदका इच्छुक [अधम्मखिया ] अधर्मकांक्षी [अधम्मपिवासिया] अधर्म का प्यासा [अपुण्णकंखिया ?] अपुण्य का कांक्षा करने वाला [नरयनिगोयकंखिया ] नरक निगोद की कांक्षा करनेवाला [नरय निगोयपिवासिया !] नरक निगोद का प्यासा [किमहूं एरिसं पावकम् करिसि ?] तूं किस लिये यह पाप कर्म कर रहा है ? [जं तिलोयनाहं] जो त्रिलोक के नाथ [तिलोयवंदियं ] त्रिलोक वन्दित [तिलोयसुहयरं] त्रिलोक के सुखकर [तिलो हियकरं ] तीन लोक का हित करनेवाले [भगवं उवसग्गेसि-त्ति तं तज्जिउं तालिउं हरिं वाकमीअ] भगवान् को उपसर्ग करता है इस प्रकार कह कर शक उसे तर्जन करने ताडन करने और मारने को उद्यत हुए । [तं दट्ठे करुणावरुणालए भगवं 19555105001001 2008 भगवतो गोपकृतो पसर्गवर्णनम् ॥ २०९॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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