________________
WA
कम्पपत्रे सशब्दार्थे ॥२०१॥
... इस तरह बार-बार दुःखमय वचन उच्चारण करने वाले नन्दिवर्धन आदि सभीजनों के प्रभुविरहे
नन्दि- नेत्रों से मोतियों की माला के समान महती आसुओं की धारा निकलने लगी। अत एव
Mवर्धनादीनां आंखों रूपी सीपों से अश्रु रूपी मोती इधर उधर विखरने लगे। इस प्रकार का शोक | विलापअवसर जानकर मानों सूर्य भी मन्द किरण एवं अस्तोन्मुख हो गया। एक दूसरे के दुःख
वर्णनम् को देखकर परस्पर दुःखी होता है मानो यही सोचकर सूर्य अस्ताचल की ओर चला गया सूर्य के अस्त हो जाने पर पृथ्वी ने अंधकार रूपी काले वस्त्र को धारण कर लिया, अर्थात्
अंधकार से ढक गई। सभी लोग शोक से आकुल थे अतएव सबके चहरे फीके पड गये 1 थे। वे अपने-अपने स्थान पर चले गए ॥४३॥
मूलम्-जया णं समणे भगवं महावीरे खत्तियकुंडग्गामाओ निग्गच्छित्ता कुम्मारगामस्स समीवं समणुपत्ते, तया णं मूरो अस्थमिओ, मुरे अत्थमिए साहूणं विहरणं अकप्पणिज्जति कटु भयवं गामासण्णतरुयले
॥२०॥
Pil
.