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प्रभुविरहे नन्दि
करपात्रे !! रण किया 'हे वीर ! तुम्हारे विना सुनसान वन के समान भयंकर भवन राजभवन में सन्दायें
हम किस प्रकार जाएंगे। इस विषय में श्लोक भी है-'तए विना' इत्यादि। हे वीर तुम्हारे दीना ॥२०॥ बिना अब शुन्य वन के सदृश भवन में हम किस प्रकार जाएं? हे बन्धु इस समय हम विलाप
वर्णनम् वह गोष्ठी का सुख तत्व विचारण से होने वाला आनन्द किस के साथ अनुभव करेंगे और किस के साथ भोजन करेंगे ? ॥१॥
हे आर्य सभी कामों में हे वीर' इस प्रकार तुम्हें संबोधित करके और तुम्हारे दर्शन करके तथा तुम्हारे प्रेम की प्रचुरता से हम आनन्द लाभ किया करते थे। अब तुम्हारे _ वियोग में हम निराधार हो गये हैं। हाय किसका आधार लें ? २॥
... 'हे बन्धु हमारे नेत्रों के लिए सुखजनक अंजन के समान तथा अत्यन्त प्रिय तुम्हारा । 1 दर्शन फिर कब होगा ? हे समस्त गुणों से सुन्दर ! राग रहित चित्तवाले होकर भी तुम । हमें कब स्मरण करोगे ? ॥३॥
॥२०॥