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कल्पसूत्रे सशब्दार्थे
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समान बढी बडी आंसुओं की धारा निकलने लगी [तहय अच्छित्तियाओ बिंदु मुत्ता हाणि परिओ विकिरिउमारभीअ] अतएव आंखों रूपी सीपों से अश्रुरूपी मोती इधर-. उधर बिखरने लगे । [ एवं सोगमयं समयं निरिक्खिय दिनमणीवि मंदधिणी जाओ ] इस प्रकार का शोक अबसर जानकर मानो सूर्य भी मन्दकिरण अस्तोन्मुख हो गया [एगो अवरस्स दुक्खं परोप्परं दट्टं दूयइत्ति विभावियविव सहस्स किरणो अत्थमिओ] एक दूसरे के दुःख को देखकर परस्पर दुःखी होता है, मानो यही सोचकर सूर्य अस्ताचलकी ओर चला गया । [सूरे अत्थमिए धराय अंध्यारा आच्छायणं धरीअ ] सूर्य के अस्त हो जाने पर पृथ्वी ने अंधकार रूपी काले वस्त्र को धारण कर लिया [जणा य सोगाउरा विच्छायावयणा सयं सयं गिहं पडिगया ] सभी लोग शोक से व्याकुल एवं मुरझाये चेहरे से अपने अपने घर पर चले गये ॥ ४३ ॥
अर्थ - शोकाकुल लोगों में से नन्दिवर्धन ने इस प्रकार विलाप के वचनों का उच्चा
प्रभुविर हे नन्दि
वर्धनादीनां विलापवर्णनम्
॥ १९९॥