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________________ कल्पसूत्रे शब्दार्थे ॥१९८॥ 11 किस के साथ बैठकर भोजन करेंगे [सव्वेसु कज्जेसु य वीर-वीरे च्चामंतणादंसणओ तज्ज] हे आर्य! सभी कार्यों में 'हे वीर, हे वीर इस प्रकार तुम्हें संबोधित करके, तुम्हारे दर्शन करके [पेपकिट्ठीइ भजीअ मोयं] तुम्हारे प्रेमकी प्रकृष्टता से आनन्द भोग [सिया के अह आसयामो] किन्तु आज हम निराधार हो गये । अब किसका आश्रय लेंगे [अइप्पियं बंधव! दंसणं ते सुहं जणं भावि कयऽम्ह अक्खिणं] हे बन्धु ! मेरे नेत्रों के लिए सुखद अंजन के समान तथा अत्यन्त प्रिय तुम्हारा दर्शन अब aa होगा ? [नीराग चित्तोऽवि कयाह अम्हे सरिस्ससी सव्वगुणाभिरामा] हे सर्वगुणाभिराम | तुम विरक्त चित्त होकर भी कब हमें स्मरण करोगे ? [इच्चेवं भुज्जो भुज्जो विलपंताणं] इस तरह बार बार विलाप करते हुए नन्दिवर्धन तथा अन्य लोगों के नेत्रों से [तेसिं सव्वेसिं अच्छओ मोत्तियमाल फारा अहारा निस्संदिउमुवाकमीअ] उन सभी जनों के नेत्रों से मोतियों की माला के प्रभुविरहे नन्दिवर्धनादीनां विलाप वर्णनम् ॥१९८॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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