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अलस्त्रे
सभन्दाय
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वर्णनम्
किसी प्रकार चेतना उत्पन्न करनेवाले शीतलोपचार से होश में आये भी तो अतीव प्रभुविरहे व्यथा का अनुभव करने लगे निरंतरईसिउसिणसलिलोच्छलिय धारामोयणाई लोयणाइंस
वर्धनादीनां पमज्जिय पज्जदुक्खभायणं सयमप्पाणमेव निंदीअ-धी ! धी! अम्हाणं पावविवागं] विलाप| अनवरत हल्के से उष्ण जल की उछलती धारा बहाने बाले नेत्रों को पोंछकर वह अतीव | दुःख के पात्र अपनी आत्मा की इस प्रकार निंदा करने लगे धिक्कार है-धिक्कार है हमारे पाप के परिणाम को! [अमू बंधुविरहो पागसासणी असणी विव अम्हे णिहणइ] यह बन्धुवियोग इन्द्र के वज्र की तरह हमें चोट पहुँचा रहा है [एवं दुस्सह पहुविरहदुक्खेण खिण्णो पयाभिणंदणो णंदिवद्धणो राया मुत्तकंठ माकंदीअ] इस प्रकार प्रभु के दुस्सह विरह के
दुख से खिन्न और प्रजा को आनन्द देने वाले नंदिन राजा मुक्त कण्ठ से आक्रन्दन || करने लगे [अस्सा हथिणे अवि अस्सूई पमुंचमाणा अत्थोगसोगमाइणो भवीअ] घोडे | और हाथी आंसू बहाते हुए प्रबल शोक करने लगे [तयाणि नच्चसूरेहि मऊरेहि वि नच्चं
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