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________________ minormanar प्रभुविरहे नन्दिवर्धनादीनां विलापवर्णनम् awes स्पसूत्रे । हीन हो जाता है, और जैसे रसभाग सूख जाने पर पत्ता मलिन-फीका निष्प्रभ हो न्दार्थ... जाता है, उसी प्रकार लोगों का मन फीका होगया [जणनयणाओ फारा वारिधारा १८॥ पाउसम्मि वुट्टिधाराविव वहिउमारभी] वर्षाऋतु की पानी की धारा की तरह लोगों के - आंखों से आंसुओं की धारा बहने लगी [पहुवरग्गजो अरिमदणो नंदिवद्धणो नरिंदो पक्खलंता आभरणो पडंतपसूणसमूहो छिण्णाणोगहोविव विगयचेयणो अवणियले सव्वं- गेण धसत्ति पडिओ] भगवान् के भ्राता शत्रुओं के मर्दक नन्दिवर्धनराजा बेसुध होकर धडाम से सर्वांग से कटे वृक्ष की तरह धरती पर गिड पडे, उनके सभी आभूषण ऐसे गिर पडे मानो वृक्ष के फल झड गये हो [तं दवणं सव्वे सामंतप्पभियओ आवि समं. , तओ अवणियले निवडिया] उन्हें गिरा देखकर सभी सामन्तगण आदि भी इधर उधर ... धरती पर गिर पडे [तएणं विलीणो णंदिवद्धणो भूवो कहपि चेयणायारेण सियलोवया... रेण] चेयणं णीओऽवि अईव वहिओ भवीअ] उसके बाद संज्ञाहीन नन्दिवर्द्धन राजा ॥१८॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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