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-पत्रे कर और प्रत्याख्यान-परिज्ञा से त्यागकर सिंहवृत्ति से सामायिक चारित्र अंगीकार किया। पभन्दाथ। उस समय देवों और असुरों का समूह तथा मनुष्यों का समूह चित्रलिखित के समान .
सर्वालङ्कार ॥१८॥
त्यागपूर्वक । स्तब्ध रह गया। श्री वीर प्रभु, के चारित्र-ग्रहण के पश्चात् शक देवेन्द्र देवराज अचा- सामायिफ नक ही आ पहुंचे और उन्होंने श्रमण भगवान् महावीर के केशों को हीरे के थाल में
चारित्र
प्रतिपत्तिः 'ले लिये। जिस समय भगवान् ने सामायिक चारित्र को अंगीकार किया, उसी समय भगवान् वधमान को चौथा, अर्थात् मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्यय और केवल रूप पांच ज्ञानों में से चौथा मनः पर्ययज्ञान उत्पन्न हो गया।
तब शक आदि चौसठ इन्द्र सभी देव और देवियों श्री वीर प्रभु का इस प्रकार ।। अभिनन्दन करने, लगे-'भगवान् सर्वोत्कृष्ट होकर वर्ते। साधु धर्म का पालन कीजिए, आठ प्रकार के कर्मरिपुओं के शुक्ल भ्यान से दूर कीजिए, रागद्वेष रूपी मल्लों का मानमदन कीजिए, मुक्तिमहल पर आरोहण कीजिए।' इत्यादि रूप से चित्तोत्साहजनक ... ॥१८.५