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सन्दा २१७९॥
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मासों में प्रथम मास मार्गशीर्ष था, प्रथम पक्ष-मार्गशीर्ष कृष्णपक्ष था, उस मार्गशीर्ष
भगवतः कृष्णपक्ष की दशमी तिथिमें, सुव्रत, नामक दिन में, विजया नामक मुहूर्त में हस्तनक्षत्र का
सर्वालङ्कार
त्यागपूर्वक से उपलक्षित उत्तरा नक्षत्र अर्थात् उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के साथ चन्द्रमा का योग होने
सामायिक पर, छाया जब पूर्व दिशा की ओर जा रही थी, अर्थात् अपराह्न के समय में, एक प्रहर चारित्र
प्रतिपत्तिः जब शेष था, अर्थात् दिन के चौथे प्रहर में, जलपान-रहित (चौवीहार) षष्ठभक्त के साथ, भगवान् महावीर ने दाहिने हाथ से दाहिनी ओर का और बायें हाथ से बांयी तरफ का.पंचमुष्टिक लोच किया। तब स्वर्ग के अधिपति देवेन्द्र देवराजने भगवान को सदोरक- Himal मुखवस्त्रिका, रजोहरण, गोछा और देवदूष्यवस्त्र अर्पण किया तदनन्तर भगवान ने साधुवेष धारण किया साधुवेष ग्रहण करने से एक अन्तर्मुहर्त पर्यन्त तीनों लोक में प्रकाश हुआ,
भगवान्ने साधुवेष ग्रहण करके सिद्धों को नमस्कार किया । नमस्कार करके 'मेरे लिए | मा समस्त प्राणातिपात आदि पाप-सावद्यकर्म अकर्तव्य हैं, इस प्रकार ज्ञ-परिज्ञा से जान
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