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कश्यपत्रे . प्रभन्दाथै ११७८॥ ५०"
तएणं समणे भगवं महावीरे मित्तणाइणियगसयणसंबंधिपरियणं पडिविसज्जेइ] तब भगवतः
सर्वालङ्कारश्रमण भगवान महावीर ने मित्रो, ज्ञातिजनों, निजजनों, संबंधिजनों और परिजनों का
त्यागपूर्वक विसर्जन किया. [सयं च इमं पुयारुवं अभिग्गहं अभिगिण्हइ] और स्वयं ने इस प्रकार सामायिक
चारित्र का अभिग्रह ग्रहण किया [जमहं वारसवासाई वोसट्टकाए चत्तदेहे जे केइ दिव्वा वा
प्रतिपत्तिः माणुस्सा वा तेरिच्छिया वा उवलंग्गा समुप्पज्जिस्संति] मैं बारह वर्ष पर्यन्त कायोत्सर्ग करके, देहममत्व का परित्याग करके, जो भी कोई देव सम्बन्धी, मनुष्यसम्बन्धी और ॥ तियच सम्बन्धी उपसर्ग उत्पन्न होंगे [तं सम्म सहिस्सामि खमिस्सामि तितिक्खिस्सामि अहियाइस्सामि नो णं कस्स वि साइज्ज इच्छिस्साभित्ति] उन्हें सम्यक् प्रकार से सहन करूंगा, क्षमा करूंगा, तितिक्षा करूंगा निश्चल रहूंगा। मैं किसी की सहायता की। अपेक्षा नहीं करूंगा ॥४१॥ ... अर्थ-'तेणं कालेणं' उस काल उस समय में जो प्रसिद्ध हेमन्तऋतु के चार ॥१७८॥
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