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कारसपत्रे
भगवतः सर्वालङ्कारत्यागपूर्वक सामायिक चारित्र. .. प्रतिपत्तिः
वचनों से पुनः पुनः अभिनन्दन तथा स्तवन करते हुए, आकाश में जय-जयकार करते मन्दा हुए, जिस दिशा से प्रकट हुए थे उसी दिशा में चले गये। ११८१॥
Jite शक आदि के चले जाने के पश्चात् श्रवण भगवान महावीर ने मित्रजनों, I सजातियों, निजजनों (पुत्रादिकों) स्वजनों (काका आदि को), संबंधीजनों, (पुत्र
पुत्री आदि के श्वसुर आदि नातेदारों) तथा परिजनों (दासीदास-वगैरह) को बिसHit र्जित किया और स्वयं इस प्रकार का अभिग्रह-नियम ग्रहण किया-मैं, बारह वर्षों In तक कायोत्सर्ग किये, देहममत्व का त्याग किये, देवों संबंधी. मनुष्यों सम्बंधी अथवा
तिर्यचों संबंधी जो भी उपसर्ग उत्पन्न होंगे उन उत्पन्न हुए उपसर्गों को मानसिक | दृढता के साथ निर्भय भाव से सहन करूंगा. विना क्रोध के क्षमा करूंगा, अदीन भाव से सहन करूंगा, और निश्चल रहकर सहन करूँगा। उन उपसर्गों के सहन करने आदि में किसी देव या मनुष्य की सहायता की अभिलाषा भी नहीं करूँगा ॥४१॥
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