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________________ कल्पसूत्रे -सशब्दार्थ ११६९/ । सुरेन्द्रादीनां शिविका वहनम् बलि दक्षिण की तरफ से वहन किये और वेणुदेव तथा वेणुदालि नामक दोनों सुवर्णकुमारेन्द्र उत्तर की और से वहन करते हैं ।॥३९॥ . . मूलम्-तए ण ते मणुया सुरिंदा असुरकुमारिंदा णागकुमारिंदा सुवण्णकुमारिंदा य तं सिवियं उव्वहमाणा उत्तरखत्तियकुंडपुरसन्निवेसस्स मज्झंमज्झेण निग्गच्छंति निग्गच्छित्ता जेणेव णायसंडे उब्जाणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छ्त्तिा ईसिरणियमाणं अच्छोप्पेणं भूमिभागेणं सणियं सणियं पुरिससहस्सवाहिणिं चंदप्पहं सिबियं वेति । तए णं समणे भगवं महावीरे ताओ सिंबियाओ सणियं सणियं पच्चोयरइ, पच्चोयरित्ता सीहासणवरे पुव्वाभिमुहे | संनिसण्णे। तओ पच्छा उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए उवागच्छइ, उवागच्छित्ता हारहाराइयं, सव्वालंकारं ओमुयइ। तए णं वेसमणे देवे जंतुवायपडिए समणस्स
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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