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स्पसत्रे ।। वन्दना की, नमस्कार किया। वन्दना नमस्कार करके महा मूल्यवान् क्षौम वस्त्रों को: । इन्द्रादिशब्दार्थे ।
देवैः कृत प धारण किये हुए भगवान् तीर्थंकर को शिबिका में बिठलाये । तत्पश्चात् शक और ईशान १६८||
निष्क्रमण यह दोनों इन्द्र भगवान के दाहिने बांये पार्श्व-भाग में (खडे होकर) मणियों और, 'महोत्सवः रत्नों के डंडों वाले चामर भगवान् श्री वीर स्वामी पर बीजने लगे। तदनन्तर श्री वीर. भगवान् जिसमें विराजमान थे, उस पालकी को पहले रोमांचित और हर्ष के वश उल्लसित हृदयवाले मनुष्योंने उठाया। बाद में वैमानिकों के इन्द्र, सौधर्म, चमर और. बलि नामक असुरेन्द्र, धरण और भूतानन्द नामक नागकुमारेन्द्र, वेणुदेव और वेणुदालि नामक सुवर्णकुमारेन्द्र-ये छह भवनपतियों के इन्द्र क्रमशः वहन करने लगे। शिबिका
को वहन करने वाले सुरेन्द्रों, असुरेन्द्रों, नागकुमारेन्द्रों तथा सुवर्णकुमारेन्द्रों में से । सुरेन्द्र सौधर्मादि उस वीराधिष्ठित शिविका को पूर्व दिशा की तरफ से वहन किये, .. भूतानन्द नामक नागकुमारेन्द्रो पश्चिम दिशा की तरफ से, धरण और असुरेन्द्र चमर ॥१६८॥
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