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कल्पक्षत्रे -सभन्दा ॥१६॥
इन्द्रादिदेवः कृत निष्क्रमण महोत्सव
पालकी का निर्माण किया। वह पालकी कैसी थी, सो कहते हैं-हाथी घोडे आदि के बहुत प्रकार के चित्रों से युक्त थी। हार (अठारह लडों का), अर्द्धहार (नौ लडों का)। आदि भूषणों से भूषित थी। मोतियों के समूहों के जालों (गवाक्षों) से उसकी शोभा बढ रही थी। चित्त में आनन्द उत्पन्न करने वाली और अतिशय मानसिक आह्लाद उत्पन्न करने वाली थी। कमलों द्वारा की गई रचना से अनुपम थी। अनेक प्रकार के कर्केतन आदि रत्नों तथा वैडूर्य आदि मणियों की किरणों की दीप्ति से जगमगी रही
थी। विविध रंगों के घंटाओं और पताकाओं से उसके शिखर का अग्रभाग सुशोभित | था। उसके बीच में पादपीठ सहित सिंहासन रक्खा था। इस प्रकार की एक बडी हजार | il पुरुषों द्वारा वहन करने योग्य चन्द्रप्रभा नामकी शिबिका वैक्रियशक्ति से उत्पन्न की।
. शिबिका की विकुर्वणा करके शकेन्द्र जिस जगह श्रमण भगवान महावीर थे, उसी जगह आये। आकर श्रमण भगवान् महावीर को तीन बार आदक्षिण प्रदक्षिण-पूर्वक
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